
सीबीएसई ने दी एक बड़े शैक्षणिक बदलाव को मंजूरी 10वीं बोर्ड परीक्षा साल में दो बार: मसौदा मंजूर, अब जनता से मांगी जाएगी राय
नई दिल्ली, 28 फरवरी 2025: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने एक बड़े शैक्षणिक बदलाव को मंजूरी देते हुए वर्ष 2026 से कक्षा 10वीं की बोर्ड परीक्षाएं साल में दो बार आयोजित करने का मसौदा पास किया है। इस नए प्रस्ताव के तहत छात्रों को एक साल में दो अवसर मिलेंगे, जिसमें वे अपने बेहतर अंकों को अंतिम परिणाम में शामिल कर सकेंगे। बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि मसौदे को सार्वजनिक प्रतिक्रिया के लिए जारी किया गया है और 9 मार्च तक आम नागरिक, शिक्षाविद् और हितधारक इस पर अपने सुझाव दे सकते हैं।
द्विवार्षिक परीक्षा का प्रारूप
नए नियमों के अनुसार, कक्षा 10वीं के छात्र 2026 से साल में दो बार बोर्ड परीक्षा दे सकेंगे। पहली परीक्षा मार्च-अप्रैल और दूसरी संभवतः मई जून में आयोजित होगी।
छात्रों के लिए दोनों में से बेहतर प्रदर्शन वाले स्कोर को अंतिम मान्यता दी जाएगी। यह प्रक्रिया कक्षा 12वीं के लिए पहले से ही लागू है।
मसौदे की मंजूरी और अगले कदम
सीबीएसई की गवर्निंग बॉडी ने मंगलवार को इस प्रस्तावित व्यवस्था को हरी झंडी दिखाई। अब 9 मार्च तक जनता और विशेषज्ञों से सुझाव मांगे जाएंगे।
प्रतिक्रियाओं के आधार पर नीति को अंतिम रूप दिया जाएगा और 2026 के शैक्षणिक सत्र से लागू किया जाएगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का अनुपालन
यह कदम एनईपी 2020 के सुझावों के अनुरूप है, जिसमें छात्रों पर परीक्षा के दबाव को कम करने और लचीले मूल्यांकन प्रणाली पर जोर दिया गया है।
सीबीएसई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह बदलाव छात्रों को अपनी क्षमता के अनुसार बेहतर प्रदर्शन करने का मौका देगा। साथ ही, एक बार परीक्षा में असफल होने पर छात्रों के सामने विकल्प होगा।
छात्रों और अभिभावकों की प्रतिक्रिया
शिक्षक संघों और अभिभावकों ने इस कदम का स्वागत करते हुए इसे “छात्र-हितैषी” बताया है। हालांकि, कुछ का मानना है कि स्कूलों को दोनों सत्रों के लिए पाठ्यक्रम और संसाधनों का प्रबंधन सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह बदलाव?
शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह कदम छात्रों को “एक बार में सब कुछ याद रखने” के पारंपरिक दबाव से मुक्त करेगा। साथ ही, यह उन छात्रों के लिए राहत होगी जो किसी कारणवश एक परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। इससे ड्रॉपआउट दर में कमी और शैक्षणिक नतीजों में सुधार की उम्मीद है।
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