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विजिलेंस: 12 जुलाई। देश में मनमाने तरीके से होने वाली पुलिस गिरफ्तारियों पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जताई है।

शीर्ष अदालत ने सोमवार को केंद्र सरकार से आरोपियों को अनावश्यक रूप से गिरफ्तारी न करने के लिए जांच एजेंसियों के लिए एक कानून बनाने को कहा है

कोर्ट ने कहा कि मनमाने तरीके से एवं बिना सोचे समझे होने वाली गिरफ्तारियां औपनिवेशिक मानसिकता को प्रदर्शित करती हैं और इससे लगता है कि हम ‘पुलिस स्टेट’ में रहते हैं।

जस्टिस संजय किशन कौल एवं जस्टिस सुंद्रेश की पीठ ने सरकार से जमानत देने की प्रक्रिया को और बेहतर बनाने के लिए एक नए कानून बनाने की भी सिफ़ारिश की है। पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी पर नया कानून समय की जरूरत है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी की नियमित जमानत अर्जी पर सामान्य रूप से दो सप्ताह के भीतर और अग्रिम जमानत अर्जी पर निर्णय छह सप्ताह के भीतर फैसला करना है। कोर्ट ने राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे लोगों को गिरफ्तार करने से पहले सीआरपीसी की धारा 41 एवं 41ए का पालन कराना सुनिश्चित करें।

पीठ ने कहा, ‘भारत में जेल विचाराधीन कैदियों से भरे पड़े हैं। जो डाटा हमारे सामने आया है उसे देखने पर यही लगता है कि जेल में विचाराधीन कैदियों की संख्या काफी है। ऐसे कैदियों में गरीब एवं अनपढ़ और महिलाएं हैं। कोर्ट इन गिरफ्तारियों में जांच एजेंसियों में औपनिवेशिक मानसिकता की संस्कृति पाता है।’ अदालत ने आगे कहा कि ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद है’ का सिद्धांत अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) का आधार है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारी का कर्तव्य है कि वह गिरफ्तारी की वजहों को लिखे। कोर्ट ने अफसोस जताया कि जांच एजेंसियां उसके पहले के आदेशों का पालन नहीं कर रही हैं।

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